Monday, October 23, 2017

वर्णानुक्रम

वर्णानुक्रम

आजकल सामान्यतः किसी कोश में शब्दों को उसी क्रम में रखा जाता है जिस क्रम में उस भाषा की वर्णमाला में शब्द का पहला (शुरूआती) वर्ण आता है। कोशों के इतिहास-विवेचन के क्रम में हमलोगों ने देखा कि प्राचीन कोशों में वर्णानुक्रम के स्थान पर शब्दों के वर्गानुक्रम अथवा विषयानुक्रम को महत्त्व  दिया जाता था। 16वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक शब्द-संकलन की पुरानी पद्धति चलती रही, जिसमें अर्थ के अनुसार या उच्चारण के अनुसार शब्दों को ढूँढना अत्यंत दुष्कर होता था, लेकिन बाद में यह महसूस किया जाने लगा कि शब्दकोश में शब्दार्थ देखने की पद्धति आसान होनी चाहिए। इस नवीन आकांक्षा ने कोशकारों को नए ढंग से सोचने के लिए बाध्य किया और कोश निर्माण एवं उपयोग के लिए वर्णमालाक्रम की नई व्यवस्था प्रकाश में आई। इस प्रकार कोश में अकारादि क्रम में शब्द-संकलन को सर्वाधिक उपयुक्त माना जाने लगा और आजकल कोश में इसी पद्धति का प्रयोग किया जाता है।
        अब सवाल यह उठता है कि कोश में शब्दों को कैसे ढूँढते हैं? दरअसल कोश में शब्दों अथवा प्रविष्टियों को देखने के लिए उस भाषा के वर्णों के क्रम की सही जानकारी आवश्यक समझी जाती है। अंग्रेजी भाषा में 26 वर्ण हैं और वर्णों के योग से बनने वाले शब्दों की लेखन-पद्धति ऐसी है कि कोश में अंग्रेजी के शब्दों को ढूँढना आसान होता है। किन्तु हिन्दी की स्थिति सर्वथा भिन्न है। हिन्दी में वर्णों की संख्या 52 है और आधुनिक शिक्षा-प्रणाली में हिन्दी के प्रति ढुलमुल रवैये से ज्यादातर लोग हिन्दी वर्णों के सही क्रम की जानकारी भी नहीं रखते। ऐसे व्यक्तियों को कोशों में शब्दों को ढूँढने में बहुत परेशानी होती है। चूँकि कोशों में शब्दों का संयोजन शब्द के शुरूआती वर्ण के अनुसार होता है, इसलिए हिन्दी भाषा के वर्णों के सही क्रम को यहाँ प्रस्तुत किया गया है। हिन्दी वर्णमाला में स्वरों को सबसे पहले रखा गया है। यथा-
                      अ   आ   इ   ई   उ   ऊ  ऋ   ए   ऐ   ओ   औ  अं   अः
         स्वरों के बाद ‘क’ से लेकर ‘ह’ तक के वर्णों को स्थान दिया गया है। इस पंक्ति को पढ़ते ही आप सोच रहे होगें कि यहाँ ‘क्ष,त्र,ज्ञ और श्र की बात क्यों नहीं की गई। आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं। दरअसल उपर्युक्त वर्णों को हिन्दी वर्णमाला का संयुक्त वर्ण कहा जाता है, क्योंकि ‘क्ष,त्र.ज्ञ और श्र का निर्माण क्रमशः  क्+श, त्+र, ज्+ञ एवं श्+र  के योग से हुआ है। अतः इनसे बने शब्दों को क्रमशः क, त, ज, और श से शुरू होने वाले शब्दों के वर्ण-खण्ड में संकलित किया जाता है। इस बात का परीक्षण हिन्दी के किसी आधुनिक कोश को देखकर किया जा सकता है। इस महत्तवपूर्ण जानकारी के बाद हिन्दी वर्णमाला के व्यंजनों के सही क्रम को जानना भी जरूरी है, जो क्रमशः इस प्रकार है-
                              क   ख   ग   घ   (ङ)
                              च    छ   ज   झ   (ञ)
                              ट   ठ    ड    ढ    (ण)  { ड़ एवं  ढ़}
                              त    थ    द    ध   न
                              प    फ    ब    भ   म
                              य    र    ल    व   श   ष   स   ह
          चूँकि इनमें से ‘ङ, ञ, ण’ आदि से हिन्दी का कोई शब्द आरंभ नहीं होता है, इसलिए शब्द कोश में इन वर्णों का कोई अलग से खण्ड अथवा अध्याय नहीं होता है। शब्दों के शुरूआती वर्ण के अतिरिक्त शब्दों में शामिल क्रमशः दूसरे, तीसरे, चौथे...वर्णों के क्रम का भी ध्यान में रखा जाता है। यह पद्धति अंग्रेजी भाषा के कोशों में भी ऐसी ही होती है। अंग्रेजी कोश में आप देखते हैं कि सबसे पहले ‘a’ से बनने वाले शब्द शुरू होते हैं, फिर  ‘b’, ‘c’, ‘d’ आदि वर्णों से शुरू होने वाले शब्द। प्रथम वर्ण के क्रम निर्वाह के बाद दूसरे वर्णों के क्रम का, फिर तीसरे,चौथे..आदि वर्णों के क्रम का निर्वाह किया जाता है। जैसे-‘ab’ का,फिर’abc’का। इसी तरह के क्रम का अनुपालन अन्य वर्णों से शुरू होने वाले शब्दों के संदर्भ में भी किया जाता है। हिन्दी के शब्दकोशों में संकलित शब्दों का वर्णानुक्रम-नियम भी अंग्रेजी से मिलता-जुलता है। ‘अंक’ के बाद क्रमशः ‘अंकक’, ‘अंककरण’, ‘अंककार’, ‘अंकखरी’, ‘अंकगणित’, ‘अंकगत’, ‘अंकट’, ‘अंकड़ी’, ‘अंकतंत्र’, ‘अंकती’, ‘अंकन’ आदि शब्द आते हैं। इनमें तीसरे स्थान पर आने वाले वर्ण क्रमशः क, का, ख, ग, ट, ड, त, और न हैं। इसी प्रकार तीसरे स्थान के बाद क्रमशः चौथे, पांचवें आदि स्थान के वर्णों के क्रम का अनुपालन किया जाता है।

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