Monday, October 23, 2017

अनुस्वार एवं अनुनासिक

अनुस्वार एवं अनुनासिक
      कोशों में वर्णक्रम के अतिरिक्त अनुस्वार एवं अनुनासिकता का भी विशेष महत्त्व  होता है। अनुस्वार का प्रयोग ‘रंग’, ‘संग’, ‘इंकार’, ‘ओंकार’ आदि शब्दों के साथ होता है और अनुनासिक का प्रयोग ‘चाँद’, ‘आँख’ आदि  शब्दों के साथ होता है। हिन्दी वर्णमाला में ‘क’ वर्ग, ‘च’ वर्ग, ‘ट’ वर्ग, ‘त’ वर्ग,और ‘प’ वर्ग के पंचम वर्णों (ङ, ञ, ण, न, म आदि) को अनुनासिक ध्वनियाँ कहते हैं। आप इस बात पर गौर करेंगे तो महसूस होगा कि यद्यपि हिन्दी वर्णमाला में अनुस्वार को अ,आ.इ..आदि स्वरों के बाद रखा जाता है, किन्तु शब्दकोश में इन्हें उनसे पहले रखा जाता है। तात्पर्य यह कि अनुस्वार एवं अनुनासिक संकेतों(अं,अँ अथवा बिन्दु,चन्द्रबिन्दु) से युक्त वर्ण से शुरू होने वाले शब्द अपने निर्धारित वर्णमाला क्रम में सबसे पहले संकलित किए जाते हैं। यही कारण है कि कोश का प्रत्येक वर्ण खंड ‘अं’ और ‘अँ’ स्वरों के योग से बने शब्दों से आरंभ होता है। इस तरह पूरे हिन्दी कोश में अं, आं, इं, ऐं, औं, कं, चं, टं,पं से शुरू होने वाले शब्द पहले आते हैं। ‘हिन्दी-हिन्दी शब्द कोश’ के एक उदाहरण से इस नियम को समझा जा सकता है-
   च- देवनागरी वर्णमाला का छठा व्यंजन।
   चंक- वि. समूचा। पु. उत्तर भारत का एक उत्सव।
   चंक्रम(चंक्रमण)- पु.[सं] घूमना;टहलना;कूदना।
   चंक्रमित- वि.[सं.] घूमा या चक्कर खाया हुआ।
   चंग- वि. स्वस्थ;सुंदर;चतुर। पु.[फा.] डफली की शक्ल का एक बाजा। स्त्री. पतंग।
   चंगा- वि. स्वस्थ;नीरोग;निर्मल;भला।.....आगे...
   चंचल- वि.[सं] एक जगह या एक स्थिति में न रहने वाला; अस्थिर;डाँवाडोल;
   यहाँ ‘च’ वर्ण खण्ड के अन्तर्गत सबसे पहले चंक, चंक्रम, चंक्रमित, चंगा, चंचल आदि शब्दों को रखा गया है। इन शब्दों के बाद ही क्रमशः चई, चक, चकती, चकनाचूर, चकराना, चकाचक आदि शब्द संकलित किए जाते हैं। ‘अ’ से लेकर ‘ह’ तक,सभी वर्ण खण्डों में इसी नियम का पालन किया जाता है।

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